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संग्रह की समस्त कविताएँ प्रफुल्लता और उत्साह से भरी हुई हैं। कविता हमें 'नॉस्टेल्जिक' भी बनाती है, यानी अतीत की मधुर स्मृतियों की ओर भी लौटाती है। इसीलिए तो कवयित्री 'नन्हीं-सी गुड़िया' बन कर माता-पिता के स्नेह में खो जाती है। अतीत की मधुर स्मृतियों में घूमती हुई कविता अल्हड़ बचपन को याद करती है। दीपा की काव्य-यात्रा को देखता हूँ, तो महसूस होता है कि उसे तीज- त्यौहार भी अच्छे लगते हैं। प्रकृति के साथ विहँसना भी अच्छा लगता है। कवयित्री हिंदी का गुणगान करती है। वह प्रेम का संदेश देती है। मजहब के दुराग्रहों से ऊपर उठकर देशप्रेम की बात करती है। वह अपनी कविता 'मेरा देश प्यारा भारत' में देश का भी गुणगान करती है। अब इधर की अनेक भटकी कविताएँ देह का गुणगान करती हुई मिल जाएँगी। बहुत कम ऐसी कविताएँ हैं जो देह नहीं, देश का गुणगान करती हैं। दीपा देश के महत्व को प्रतिपादित करने वाली कवियत्रियों में है, क्योंकि वह कविता की सही दिशा को समझ रही है । इसीलिए वह अपनी कविता 'मेरी कविता' में भी कविता का एजेंडा प्रस्तुत करती है। वह स्पष्ट करती है कि मेरी कविता अगर महलों तक जाती है,तो गरीब के झोंपड़े तक भी पहुँचती है। कविता साहित्य के हर रस से गुजरती हुई जवानी और बुढ़ापे के चौखट को भी पार करती है। कुल मिलाकर एक कविता को जो कुछ बेहतर करना चाहिए, वो सब दीपा की कविताएँ करती नजर आती हैं। कवयित्री हौसला देती है, नवचेतना का संचार करती है और यह भी कहती है कि हमें कितना भी नकारा जाता हो, निराश-हताश होने की ज़रूरत नहीं। हमें अपने गंतव्य की ओर निरंतर कदम बढ़ाते रहना चाहिए। - गिरीश पंकज, वरिष्ठ साहित्यकार