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गुलांचो कुमारी

झारखण्ड की सांस्कृतिक पहचान और मूलवासियों के अधिकार के हक में उठने वाली आवाज़ों को अपनी लेखनी से स्पंदित करते रहने वाली कवयित्री, गुलांचो कुमारी, पेशे से शिक्षिका हैं। उनका जन्म 23 अगस्त 1988 को झारखंड के रामगढ़ जिला स्थित रोला गाँव में एक कुड़मि (महतो) जनजाति के सामान्य कृषक परिवार में हुआ।

उन्होने वर्ष 2017 में यूजीसी-नेट और 2018 में यूजीसी सीबीएसई नेट-जेआरएफ उत्तीर्ण किया। बी.एड की शिक्षा हासिल करने के साथ-साथ वर्ष 2018 में झारखंड सरकार द्वारा आयोजित जे-टैट की अहर्ता प्राप्त की। वे विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग से डॉ. सुबोध सिंह ‘शिवगीत’ के मार्गदर्शन में पी.एचडी कर रहीं हैं।

उनकी पहली हिन्दी कहानी 'जहरीली गैस जैसी सोच' अखड़ा के दिसम्बर-फरवरी 2021 अंक में प्रकाशित हुई। ‘मांय लय दे मोबाइल’ शीर्षक से उनकी पहली खोरठा कविता वर्ष 2021 में प्रभात खबर अखबार के ‘माय-माटी’ परिशिष्ट में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद गुलांचो कुमारी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब तक उनके साहित्यिक योगदान में दो प्रकाशित पुस्तकें, अनेक साझा संकलनों और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन शामिल है। कविता संग्रह ‘मैं पाप क्षितिज से हार गई’ (हिन्दी) और ‘कविता हामर सोक नाय’ (खोरठा) के अलावा खोरठा भाषा के साझा काव्य संग्रह ‘जुरगुड़ा’ 'केंवराक गमक ' में उनकी कविताएँ शामिल की गई हैं। विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, स्मारिकाओं एवं शोध पत्रिकाओं में आलेख, कविता और शोधपरक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें विभिन्न मंचों और संस्थानों द्वारा देश-विदेश में सम्मानित किया गया है। उन्होंने नेपाल, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम देशों में साहित्यिक यात्राएँ की हैं।

वे झारखण्ड के हजारीबाग जिले में अपनी पुत्री स्नेहा रानी, दीक्षा दानी, छवी पानी, पुत्र दुर्गेश नंदन ‘टिडुआर‘ और पति श्री दिनेश्वर महतो के साथ निवास करती हैं और झारखण्ड सरकार के उत्क्रमित +2 उच्च विद्यालय खपिया, डाड़ी, हजारीबाग में बतौर हिन्दी पीजीटी शिक्षिका सेवारत हैं।